मैं नारी वो सड़क हूँ...
जिसे लोग अपनी सुविधा के लिए बनाते हैं ।
फर्क बस इतना है,
मुझे बनाने में पत्थर और रेत की जगह,
खुद गर्जि,प्रतिबंधता और लालच का इस्तमाल करते हैं ।
मै नारी वो सड़क हूँ...
जब मैं नयी नयी होती हूँ ,
मेरी महत्ता अधिक होती ह ।
सभी मुझसे गुजरते हैं
मेरा बस इस्तमाल करना चाहते हैं ।
हाँ मैं नारी वो सड़क हूँ ...
जो लोगो के मंजिल का महज एक रस्ता हूँ,
उनकी तकलिफो को कम करने का वास्ता हूँ ।
हाँ मैं नारी वो सड़क हूँ...
जो मौसम की तरह लोगों को बदलते देखती हूँ ।
कभी तो बारिश की तरह मुझपे बरसते हैं ,
और कभी ग्रीष्म की धुप बन मुझे जलाते हैं ,
और कभी कभी तो ठंड में बर्फ की सिल्ली पे लेटा देते हैं ।
हाँ मैं नारी वो सड़क हूँ...
जो थक जाती हूँ दूसरों का काम करते करते,
पर फिर भी मेरी कोई एहमियत नहीं,
किसी की नजरों में ।
हाँ मैं नारी वो सड़क हूँ...
जो धीरे-धीरे पुरानी होती जाती हूँ ।
अब मुझपे जगह जगह गढे हो चुके हैं,
और फिर भी जब तक फायदा नही निकलता ,
तब तक उन गद्ढे को भरकर मेरा उपभोग किया जाता है ।
हाँ मैं नारी वो सड़क हूँ...
कि एक समय ऐसा आता है,
जब मेरी जरुरत खतम हो जाती है ।